भाजपा को चौतरफा घेर अखिलेश यादव बोले: भाजपा राज में ‘बाटी-चोखा’ भी नहीं केवल ‘माटी-धोखा’ खाने को मिलता है
Surrounding the BJP from all sides, Akhilesh Yadav said: Under BJP rule, you don't even get 'bati-chokha' (a traditional dish); all you get to eat is 'mud and deception'.
IPN Live
Lucknow, 26 Dec, 2025 11:02 PMलखनऊ, (आईपीएन)। भारतीय जनता पार्टी को चौतरफा घेरते हुए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि भाजपा राज में ‘बाटी-चोखा’ भी नहीं केवल ‘माटी-धोखा’ खाने को मिलता है। अब बात ‘हाता नहीं भाता’ से बहुत आगे निकल गयी है। जब बात उपेक्षा से तिरस्कार तक पहुँच जाती है तो कोई भी समाज सह नहीं पाता है। ‘सत्ता’ अथवा ‘मान’, जब केवल ये ही दो विकल्प शेष रह जाते हैं तो स्वाभिमानी समाज सदैव मान-सम्मान को ही चुनता है। ये बातें किसी एक समाज विशेष पर ही नहीं, हर समाज पर बराबर से लागू होती हैं।
कैमरे के सामने तक चुनाव लूट लेते हैं, पीठ पीछे की तो क्या ही कहिए
आईपीएन को दिए अपने बयान में अखिलेश ने कहा कि भाजपा किसी की सगी नहीं है। आज भाजपाई कहलाना एक नकारात्मक पहचान का पर्याय बन चुका है। आज भाजपाई की परिभाषा में वो लोग आते हैं जो अरावली की परिभाषा बदलकर अपने लालच के लिए पर्यावरण और आनेवाली पीढ़ियों को ठगना चाहते हैं। जो कुकृत्यों में दोष-सिद्ध, जेल में बंद अपराधियों को बेल पर छुड़ाकर उनका माल्यार्पण करते हैं। दवाइयों के नाम पर ज़हरीली-नशीली दवा बेचकर लोगों का जीवन ख़तरे में डालते हैं। कैमरे के सामने तक चुनाव लूट लेते हैं, पीठ पीछे की तो क्या ही कहिए।
ये लोग सत्ता को पैसे कमाने का साधन मात्र समझते हैं
अखिलेश ने कहा कि कहीं सीसीटीवी में अभद्रता के लिए क़ैद होकर भी आज़ाद घूमते हैं। ये वो लोग होते हैं जो भ्रष्टाचार के लिए किसी भी मर्यादा का उल्लंघन कर सकते हैं। ये बिना जांचे-परखे वैक्सीन को लगवाकर लोगों की जान के लिए ख़तरा बन जाते हैं। ये नफ़रती एजेंडा चलाकर सौहार्द और भाईचारा बिगाड़ते हैं। इकट्ठे होकर सरेआम लोगों को मार देते हैं। ये लोग तथाकथित भेदकारी नकारात्मक बातों के प्रचार-प्रसार के दौरान बच्चों तक को कलुषित करने से बाज नहीं आते हैं। जो अपनी रूढ़िवादी सोच को बचाए-बनाए रखने के लिए शिक्षा और कला को परिवर्तन का कारण मानकर नकारते हैं। जो सत्ता को पैसे कमाने का साधन मात्र समझते हैं।
ये न तो संविधान को मानते हैं न ही क़ानून को
अखिलेश ने कहा कि जिनकी सामंतीवादी सोच में महिला, ग़रीब, शोषित, वंचित, दमित समाज के लिए कोई स्थान नहीं है। ये अपने अधिकार को बचाने के लिए दूसरों के अधिकारों की हक़मारी खुलेआम करते हैं। ये न तो संविधान को मानते हैं न ही क़ानून को। ये भीड़ बनकर टूट पड़ने को ही ताक़त मानते हैं। ये वैज्ञानिक नज़रिए के खि़लाफ़ होते हैं क्योंकि वैज्ञानिक सोच सवाल करती है, और ये दक़ियानूसी लोग किसी के सवाल का जवाब न तो देना चाहते हैं न ही देने की योग्यता रखते हैं।
उन्होंने कहा कि इसी परिप्रेक्ष्य में भाजपाई और उनके संगी-साथी प्रत्यक्ष रूप से सामने नहीं आते हैं और गोपनीय तरीक़े से कार्य करने के लिए जाने जाते हैं। इनकी सोच में विविधता नहीं होती, इसीलिए ये एकरंगी सोच के लोग समावेशी नहीं होते हैं और दिखाने के लिए इन्हें घोषित करना पड़ता है ‘सबका साथ, सबका विकास’, जो दरअसल ‘कुछ का साथ, कुछ का विकास’ होता है।
ये भय और अविश्वास को समाज में फैलाकर समाजों को बाँटकर अपना उल्लू सीधा करते हैं
भाजपा की नीतियों पर हमला बोलते हुए अखिलेश ने कहा कि ये संसाधनों और शक्ति पर एकाधिकार की भावना से ग्रस्त लोग होते हैं, इसीलिए इनके समय में अमीर-ग़रीब का भेद बढ़ता है, कमीशनख़ोरी और मुनाफ़ाख़ोरी, महाभष्ट्राचार और महंगाई का कारण बन जाती हैं तथा बेरोज़गारी, बेकारी और भुखमरी बेतहाशा बढ़ती है। अपनी नकारात्मक समाजविरोधी सोच के कारण ही ये सुरंगजीवी लोग अपने ख़ुफ़िया तरीक़ों के लिए आज़ादी से पहले से कुख्यात हैं। ये भोले-भाले समाज को ‘दाने बाँटकर, खेत लूटनेवाले’ लोग होते हैं। ये भय और अविश्वास को समाज में फैलाकर समाजों को बाँटकर अपना उल्लू सीधा करते हैं।
इन्हीं सब कारणों से कोई भी देशभक्त, सभ्य, मानवतावादी, ईमानदार, सत्य-संस्कारी, मूल्य-मानी, स्वाभिमानी समाज अब भाजपाइयों और उनके संगी-साथियों के साथ खड़ा होकर अपमान, अपयश और जनाक्रोश का शिकार नहीं होना चाहता है। भाजपा जाए तो हर समाज बराबरी से सम्मान पाए।
रिपोर्ट : जितेन्द्र त्रिपाठी

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