संवैधानिक संस्थाओं का सम्मान ही लोकतंत्र की ताक़त है : डॉ. राजेश्वर सिंह
Respect for constitutional institutions is the strength of democracy: Dr. Rajeshwar Singh

IPN Live
Lucknow, 24 Sep, 2025 12:44 AM*“एक मज़बूत और एकजुट भारत के लिए संवैधानिक संस्थाओं पर विश्वास आवश्यक है : डॉ. राजेश्वर सिंह”*
*“सस्ती लोकप्रियता के लिए संवैधानिक संस्थाओं पर हमले अस्वीकार्य हैं : डॉ. राजेश्वर सिंह”*
*“लोकतंत्र तभी फलता-फूलता है जब संस्थाओं का सम्मान और सशक्तिकरण हो, न कि उन्हें कमज़ोर और उपहास का पात्र बनाया जाए : डॉ. राजेश्वर सिंह”*
*“हर आलोचना से पहले सोचें—क्या यह भारत को मज़बूत कर रही है या शत्रुओं का मनोबल बढ़ा रही है? : डॉ. राजेश्वर सिंह”*
लखनऊ, (आईपीएन)। सरोजनीनगर के विधायक डॉ. राजेश्वर सिंह ने मंगलवार को सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक तीखा संदेश जारी करते हुए लोकतांत्रिक संस्थाओं पर हो रहे निराधार हमलों की कड़ी निंदा की और कहा कि यह प्रवृत्ति राष्ट्रहित के लिए बेहद ख़तरनाक है। डॉ. सिंह ने कहा, “लोकतंत्र में संस्थाएँ ही शासन की आत्मा हैं। उन्हें कमज़ोर करना राष्ट्र की नींव को हिलाना है। न्यायपालिका, चुनाव आयोग, सशस्त्र बल, ऑडिट संस्थाएँ—ये सब राजनीति से ऊपर हैं। इन पर अंधाधुंध और प्रेरित हमले भारत पर सीधा हमला हैं।”
*सस्ती लोकप्रियता और राजनीति करने वालों को चेतावनी देते हुए डॉ. सिंह ने कहा:*
“जो लोग बिना सोचे-समझे तटस्थ संस्थाओं की विश्वसनीयता पर उंगली उठाते हैं, उन्हें समझना चाहिए कि उनके शब्द केवल प्रतिष्ठा ही नहीं बिगाड़ते बल्कि 140 करोड़ भारतीयों के विश्वास को तोड़ देते हैं। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं, बल्कि चरम स्तर की गैर-जिम्मेदारी है।”
डॉ. सिंह ने स्पष्ट कहा कि भारतीय लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा ख़तरा बाहर से नहीं बल्कि भीतर से है—जब जनता अपने ही संस्थानों पर विश्वास खो देती है। उन्होंने कहा, “कुछ त्रुटियों के आधार पर पूरे संस्थागत ढाँचे को कठघरे में खड़ा करना बेईमानी और घातक है। गैर-जिम्मेदार आलोचना कमज़ोर राजनीतिज्ञों का हथियार है, जो लोकतंत्र के प्रहरी संस्थानों का मनोबल तोड़ती है। यह आचरण केवल उन ताक़तों को मज़बूत करता है जो भारत को बँटा हुआ और अस्थिर देखना चाहते हैं।”
*कटाक्ष करते हुए डॉ. सिंह ने कहा:*
“हर शब्द बोलने से पहले खुद से पूछें—क्या यह भारत को मज़बूत कर रहा है या कमज़ोर? अगर जवाब कमज़ोर करना है, तो चुप रहना बेहतर है। लोकतंत्र तभी जीवित रहेगा जब संस्थाओं का सम्मान, सुधार और सशक्तिकरण होगा—न कि उन्हें मज़ाक और गली-कूचों की राजनीति का हथियार बनाया जाएगा।” अंत में डॉ. सिंह ने जनता से आह्वान किया कि वे ऐसे विध्वंसकारी राजनीति को ठुकराएँ और उन संस्थाओं के साथ खड़े हों जो राष्ट्र की रक्षा करती हैं।
“इतिहास गवाह है—राष्ट्र दुश्मनों से नहीं बल्कि भीतर से हुई ग़द्दारी से ढहते हैं। जो आज संस्थाओं का उपहास करते हैं, कल उन्हें उसी लोकतंत्र के मलबे पर खड़ा होना पड़ेगा जिसे वे बचाने का दावा करते हैं।”
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