सीएम सिटी गोरखपुर से था अटल जी का खास रिश्ता, 84 साल पहले भाई की शादी में सहबाला बनकर आए थे गोरखपुर

Atal ji had a special relationship with CM City Gorakhpur, 84 years ago he came to Gorakhpur as a sahbala in his brother's wedding

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Lucknow, 25 Dec, 2024 08:00 PM
सीएम सिटी गोरखपुर से था अटल जी का खास रिश्ता, 84 साल पहले भाई की शादी में सहबाला बनकर आए थे गोरखपुर

लखनऊ, 25 दिसम्बर 2024 (आईपीएन)। पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ऐसे राजनेता थे जो विपरीत परिस्थितियों में भी किसी से संवाद और समन्वय स्थापित कर सकते थे। यह उनके व्यक्तिव की विराटता का सबूत था। उनकी इसी खूबी के नाते उनको किसी दायरे में नहीं बांधा जा सकता। वह पूरे देश और सबके थे। बावजूद इसके जैसे हर किसी का कुछ जगहों से खास रिश्ता होता है, वैसे ही उनका भी था। मसलन, आगरा की बाह तहसील स्थित बटेश्वर उनकी मातृभूमि थी। पिता की नौकरी के नाते बचपन ग्वालियर में गुजरा। कानपुर से उन्होंने पढ़ाई की तो लखनऊ को अपनी राजनीतिक कर्मभूमि बनाया। 

पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर से उनका रिश्ता तो बेहद खास था। वजह थी गोरखपुर में बड़े भाई प्रेम वाजपेई की ससुराल होना। इस शादी में वह 1940 में सहबाला बनकर आए थे। मां की मौत के बाद वह ग्वालियर की जगह गोरखपुर आना ही पसंद करते। और लंबे समय तक रुकते थे राजनीतिक व्यस्तता बढ़ने के साथ ही यह सिलसिला कम होता गया।

दरअसल कुंवारे अटलजी के बड़े भाई प्रेम वाजपेयी की ससुराल गोरखपुर के आर्यनगर या अलीनगर स्थित माली टोला में रहने वाले स्वर्गीय मथुरा प्रसाद दीक्षित के घर है। 84 साल पहले वह बड़े भाई की शादी में सहबाला बनकर गोरखपुर आए थे। ड्रेस थी, हॉफ पैंट और शर्ट। दीक्षित परिवार के ड्राइंग रूम में स्वर्गीय मथुरा प्रसाद दीक्षित के साथ लगी अटलजी की एक तस्वीर भी इस रिश्ते की गवाह है। 

गर्मियों की छुट्टियों में गोरखपुर आना था पसंद

जब तक राजनीति में अटलजी बहुत व्यस्त नहीं हुए तब तक उनका गोरखपुर आना-जाना होता था। खासकर मां कृष्णा देवी की मृत्यु के बाद गर्मियों की छुट्टियों में वह गोरखपुर आना ही पसंद करते थे। लिहाजा दीक्षित परिवार के पास उनकी यादों का पुलिंदा है। अब न अटलजी रहे, न यादों को सुनाने वाले अधिकांश लोग। बावजूद उनसे जो सुन रखा है उसके मुताबिक उम्र में अटल जी से कुछ ही छोटे स्वर्गीय कैलाश नारायण दीक्षित (इंजीनियर) और सूर्यनारायण दीक्षित (पूर्व विभागाध्यक्ष वनस्पति शास्त्र विभाग गोरखपुर विश्वविद्यालय के साथ अटल जी ने अपने नौजवानी के तमाम दिनों को गुजारा था। गोरखपुर में उनके ड्राइंग रूम में एक बुजुर्ग सज्जन के साथ युवा अटल की तस्वीर देख इस रिश्ते का पता तो चल गया था, पर बहुत डिटेल में जानने की जिज्ञासा तब हुई जब एक बार अटलजी ने गोरखपुर गोलघर स्थित महाराणा प्रताप इंटर कॉलेज के मैदान में आयोजित एक सभा में अपने चिरपरिचित अंदाज में बोल दिया कि गोरखपुर से मेरा बेहद खास रिश्ता है, तब इस रिश्ते की थोड़ी बहुत चर्चा हुई। 1998 में जब अटलजी देश के प्रधानमंत्री बने तब उस परिवार से अपने रिश्ते और एक पत्रकार होने के नाते मैंने इसकी व्यापक पड़ताल की। तो मुझे संस्मरणों का यह खजाना मिला। 

रामेश्वरी उर्फ विट्टन थीं अटल जी की भाभी

पंडित मथुरा प्रसाद की पांच बहनों शांति, रामेश्वरी, सावित्री, पुष्पा व सरोज में से रामेश्वरी उर्फ विट्टन का विवाह अटलजी के बड़े भाई प्रेम बिहारी वाजपेयी के साथ हुआ था। एक बार रिश्ता कायम होने के बाद अटलजी का यहां अक्सर आना जाना होता था। चूंकि दोनों दीक्षित बंधु (कैलाश नारायण व सूर्य नारायण) लगभग उनके हम उम्र थे, इसलिए उनकी इनसे खूब पटती थी। कुछ और परिचित भी आ जाते थे और महफिल जम जाती थी। मकान के उत्तरी हिस्से में बना एक कमरा तो तब भी उसी रूप में था। वहां  अटल जी बैठते थे। कभी-कभार जब ठंडई पीनी होती तो ये लोग आंगन होकर ऊपर वाले कमरे में निकल जाते थे। 

बेसन का पनौछा और रसाद अटल जी को थी बेहद पसंद

जब अटलजी आते तब उनके एक कांग्रेसी दोस्त रमेशचंद्र दीक्षित का भी खूब आना होता था। दोनों में खूब बहस होती थी। यहां दीक्षित बंधुओं की मां फूलमती उनका खासा ख्याल रखती थी। वे उनसे ही कुछ अधिक अटैच हो गये। उनके आने-जाने और कुछ उनकी भाभी रामेश्वरी के बताने से दीक्षित परिवार अटलजी के शौक से वाकिफ हो चुका था। खाने में उन्हें बेसन की दो चीजें पनौछा, रसाद बेहद पसंद थीं। इसके अलावा खीर भी पसंद थी। 

हम पहुंचे हुए हैं, पहुंच जाएंगे

हाजिर जवाबी अटल जी की खूबी थी। अप्रैल 1994 में वे पंडित मथुरा प्रसाद दीक्षित के भाई के ब्रह्मभोज पर अलीनगर आये थे। आदतन बिना किसी तामझाम के आना हुआ था। रात में जब जाना हुआ तो स्वर्गीय कैलाश जी के पुत्र संजीव दीक्षित ने कहा कि चलिए आपको पहुंचा देते हैं। छूटते ही अटल जी ने अपनी खास स्टाइल में कहा, हम पहुंचे हुए हैं पहुंच जायेंगे।

रात कहां थी महारानी!

ऐसा ही एक वाकया दिल्ली का भी है। अटलजी को शाम को दूध पीने की आदत थी। न मिलने पर नाराज हो सकते थे। कम मिलने पर परिहास भी कर सकते थे। वाकया उन दिनों का है जब वे दिल्ली में वीर अर्जुन से जुड़े थे। सूर्य नारायण दीक्षित वहीं पी. एच. डी. करने गये थे। 5-6 महीने वे अटलजी के साथ ही रहे। उनके मुताबिक एक बार वह लोग कहीं किसी के यहां गये थे। शाम को जिस गिलास में दूध मिला वह कुछ छोटी थी। सबेरे नाश्ते के समय पानी का जो गिलास आया, उसका आकार बड़ा था। अटलजी ने गिलास को घुमा फिरा कर गौर से देखा, फिर अपने ही अंदाज में कहा, रात कहां थी महारानी। वहां मौजूद सारे लोग आशय समझ ठठाकर हंस पड़े।

राजनीति में परिवारवाद के थे कड़े विरोधी, भाई को मिल रहा टिकट कटवा दिया

अटलजी राजनीति में भाई-भतीजावाद के कड़े विरोधी थे। बडे भाई को तो मिल रहा टिकट कटवा दिया। एक बार अलीनगर स्थित मथुरा सदन आये थे। बातचीत के क्रम में संजीव ने पार्टी से अपने जुड़ाव के बारे में बताया तो उन्होंने संजीव की ओर मुखातिब होकर कहा कि भाजपा की अप्रेंटिस तो बहुत कठिन है।

रिश्तों को देते थे भरपूर सम्मान

रिश्तों का भरपूर ख्याल रखने के साथ उनका ध्यान इस बात पर रहता था कि कोई इसका लाभ लेकर उनकी छवि पर आंच न आने दे। इसलिए पार्टी के कार्यक्रमों में वे रिश्तेदारों को कोई तवज्जो नहीं देते। पर पारिवारिक समारोहों में वे बिल्कुल बेतकल्लुफ रहते हैं। कोशिश यह रहती है कि ऐसे मौकों पर पूरी तरह संजीदा रहने के लिए वे अकेले ही जायें और मौके का पूरा आनंद लें। वह संबंधों का कितना ख्याल रखते थे, इसके एक-दो वाकये ही काफी हैं। अटलजी गोरखपुर में एक चुनावी सभा संबोधित करनी थी। उनसे मिलने के लिए दीक्षित बंधु सर्किट हाउस गए। आने में देरी की वजह से दोनों लौटने लगे। अभी वे सर्किट हाउस से कुछ दूर पहुंचे थे कि गाड़ियों का काफिला आता हुआ दिखा। दोनों चुपचाप काफिले के गुजरने तक के लिए सड़क के किनारे खड़े हो गये। दो गाड़ियां गुजर गयीं। तीसरी गाड़ी थोड़ी रुकी। एक व्यक्ति उसमें से उचका और हाथ हिलाया और गाड़ी चल दी। बूढ़ी आंखें इसे समझ नहीं पाईं। बाद में पार्टी के नेताओं ने बताया कि हाथ हिलाने वाले अटलजी ही थे। बाद में भाजपा के तबके प्रदेश अध्यक्ष और मौजूदा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने सूर्य नारायण से भेंट के दौरान इसकी तस्दीक करते हुए कहा, उस गाड़ी में मैं भी था।

’बाकी शहरों से रिश्ता’

’कानपुर’

ग्वालियर से पढ़ने के बाद अटलजी कानपुर के डी.ए.वी. कॉलेज में कानून की पढ़ाई करने आये। यहां शादीशुदा बड़े भाई प्रेम सपरिवार रहते थे। वह घुमनी मोहाल मोहल्ले में एक स्कूल में पढ़ाते थे। ट्यूशन के साथ वह भी एलएलबी कर रहे थे। 

’पिता और पुत्र एक साथ कर रहे थे लॉ’

रिटायर होने के बाद उनके पिता भी यहां कानून की पढ़ाई करने आये। उस समय बड़ा मजेदार वाकया हुआ। जब वे दाखिले के लिए पहुंचे तो प्राचार्य ने पूछा कि किस लड़के का दाखिला चाहिए तो उन्होंने कहा, लड़के तो पढ़ रहे हैं खुद ही प्रवेश लेना है। 

’फादर इज जूनियर टू सन’

बाद में जब अटलजी के दोस्तों में इस बात की चर्चा हुई तो उन लोगों ने होली के दिन अखबारों में श्फादर इज जूनियर टू सनश् के शीर्षक से इस प्रकरण को निकलवा दिया।

’कानपुर से लखनऊ’

बाद के दिनों में वे कानपुर से लखनऊ आ गये। यहा वह पांचजन्य पत्रिका से जुड़ गये। उस समय कैलाश दीक्षित भी सुंदरबाग में रहकर अप्रेंटिस कर रहे थे। अटलजी वहां एपी सेन रोड स्थित संघ के कार्यालय में ही रहते थे। शाम को वे अक्सर सुंदरबाग आते थे। अगर खाना बनाने की तैयारी हो रही होती थी तो पूछते, घी है न। घूमने के लिए अक्सर अमीनाबाद जाते थे। मन में आया तो पीपल के पेड़ के पास कोने की दुकान पर ठंडई भी पीते थे। शौक तो उन्हें पिक्चरों का भी था पर पूरी देखेंगे या उठकर चल देंगे अथवा हाल ही में उंघने लगेंगे, यह पसंद पर निर्भर था। लखनऊ में उन दिनों वह अपने फुफेरे भाई जगदीश चंद दीक्षित के सरोजनी देवी लेन लाल कुंआ पर भी अक्सर आते थे।

’लखनऊ से दिल्ली’

बाद के दिनों में अटलजी दिल्ली गये और वीर अर्जुन से जुड़ गये। उन दिनों नया बाजार में वीर अर्जुन का कार्यालय था। वहीं पर अटलजी भी रहते थे। कुछ दिनों बाद सूर्य नारायण जी वहां दिल्ली विश्वविद्यालय से पी.एचडी. करने गये। वहां शुरू में एक गढ़वाली नौकर था। वह खाना बनाता था। महीने भर बाद भाग गया। खाना बनाने की दिक्कत आयी। दीक्षित जी सवेरे ही विश्वविद्यालय चले जाते थे। अटलजी कुछ खा लेते थे। शाम को खाना बनता था। दूध से कोई समझौता नहीं। चांदनी चौक की पराठा वाली गली से पराठे, चटनी और जलेबी खाना भी उनको पसंद था।

’पढ़ना उनकी आदत थी’

अटलजी पढ़ने के बहुत शौकीन थे। सांसद होने के बाद जिस मकान में रहते थे वहां दो कमरों में अखबार की रद्दी थी। एक में दो पलंग व कुर्सियां, अटैच बाथरूम और अखबार रहता था। तमाम अखबार वह बाथरूम में ही वे पढ़ लिया करते थे। शायद इसी शौक के कारण उन्होंने अपने जीते जी ग्वालियर स्थित अपने पैतृक मकान को लाइब्रेरी में तब्दील करवा दिया था।

भावुकता, रचनाधर्मिता और अध्यवसाय उनको विरासत में मिली थी। पिता कृष्ण वाजपेयी सिंधिया राज्य में इंस्पेक्टर आफ स्कूल थे। बाबा पंडित श्यामलाल वाजपेयी संस्कृत के प्रकांड विद्वान और कवि थे। इनके पिता पंडित काशी प्रसाद भी संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे। उनका अधिकांश समय काशी में अध्ययन करते गुजरा था।

’कभी-कभार छान भी लेते थे’

ठंडई पीना उनका खानदानी शौक था। बाबा श्यामलाल वाजपेयी भी दैनिक क्रिया और पूजा पाठ के बाद एक गोला गटक लेते थे। बाकी का गोला बनाकर अपनी बकुची (एक तरह की डालिया) में रख लेते थे। अटलजी के पिताजी कृष्ण वाजपेयी भी सबेरे नंगे बदन बैठ कर सिलबट्टे पर भांग पीसते थे। इस दौरान वह बार-बार अपने बांह की मांसपेशियां भी देखते रहते। अटलजी भी नौजवानी के दिनों में कभी-कभार ठंडई छान लेते थे। इस शौक की एक और भी वजह थी। उनकी मातृभूमि आगरा के बाह तहसील के बटेश्वर में यमुना नदी के किनारे थी। वहां भगवान शिव के कई मंदिर हैं। मान्यता है कि शिवजी को भांग प्रिय है।

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