संविधान हत्या दिवस की आवश्यकता क्यों?

इस वर्ष देश को कांग्रेस द्वारा आपातकाल के अँधेरे में झोंकने के भी पचास वर्ष हो रहे हैं । संविधान के पॉकेट साइज़ संस्करण को लहराते लोगों को वास्तविकता का स्मरण कराते हुए संसद के प्रथम संक्षिप्त सत्र में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला व फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपातकाल को याद करते हुए कांग्रेस सहित संपूर्ण विपक्ष को आईना दिखा दिया। राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में आपातकाल को सबसे बड़ा काला अध्याय बताया था। आपतकाल कांग्रेस व उसके सहयोगियों की एक दुखती रग है। लोकसभा अध्यक्ष आपातकाल की भर्त्सना का प्रस्ताव लाए और सदन में दो मिनट का मौन रखा। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात देश की राजनीति के सबसे काले अध्याय आपातकाल से वर्तमान और भारी पीढ़ियों को अवगत कराने के लिए अब केंद्र सरकार ने प्रतिवर्ष 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लेते हुए इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी है। ये एक अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय है क्योंकि जन सामान्य जिसने आपातकाल का दौर नहीं देखा उसे पता होना चाहिए कि संविधान बदलना और उससे खिलवाड़ करना वास्तव में क्या होता है, जो कांग्रेस ने आज से पचास साल पहले किया था।

IPN Live

IPN Live

Lucknow, 16 Jul, 2024 06:03 PM
संविधान हत्या दिवस की आवश्यकता क्यों?

मृत्युंजय दीक्षित 

आईपीएन। लोकसभा चुनाव 2024 के चुनाव अभियान के दौरान कांग्रेस के नेतृत्व में इंडी गठबंधन ने एक झूठा नैरेटिव व्यापक स्तर पर चलाया था कि अगर केंद्र में नरेंद्र मोदी इस बार 400 सीटों के साथ सरकार बनाने में सफल हो जाते हैं तो संविधान बदल दिया जायेगा तथा भविष्य में फिर कोई चुनाव नहीं होगा।इस झूठ ने चुनाव को प्रभावित किया और भाजपा अकेले पूर्ण बहुमत नहीं ला पाई। 

चुनाव के बाद संसद के प्रथम सत्र में इंडी गठबंधन के नेता संविधान के पॉकेट साइज़ संस्करण को लहराते दिखाई दिए। संविधान की सुरक्षा को लेकर देश में तीखी राजनैतिक बहस चल रही है। राहुल, अखिलेश यादव और शशि थरूर आदि ने संविधान के इसी पॉकेट साइज़ संस्करण को हाथ में लेकर शपथ ली। विपक्ष का इरादा आगामी विधानसभा चुनावों में भी संविधान की रक्षा करने का नैरेटिव चलाने का है क्योंकि अब उसे लग रहा है कि संविधान, आरक्षण और लेकतंत्र की रक्षा के झूठे नैरेटिव के सहारे ही भाजपा का विजय रथ रोका जा सकता है।  संविधान की रक्षा के नाम पर दलितों, पिछड़ों, अति पिछड़ों आदि को भाजपा से दूर किया जा सकता है। 

इस वर्ष देश को कांग्रेस द्वारा आपातकाल के अँधेरे में झोंकने के भी पचास वर्ष हो रहे हैं । संविधान के पॉकेट साइज़ संस्करण को लहराते लोगों को वास्तविकता का स्मरण कराते हुए संसद के प्रथम संक्षिप्त सत्र में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला व फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपातकाल को याद करते हुए कांग्रेस सहित संपूर्ण विपक्ष को आईना दिखा दिया। राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में आपातकाल को सबसे बड़ा काला अध्याय बताया था। आपतकाल कांग्रेस  व उसके सहयोगियों की एक दुखती रग है। लोकसभा अध्यक्ष आपातकाल की भर्त्सना का प्रस्ताव लाए और सदन में दो मिनट का मौन रखा। 

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात देश की राजनीति के सबसे काले अध्याय आपातकाल से वर्तमान और भारी पीढ़ियों को अवगत कराने के लिए अब केंद्र सरकार ने प्रतिवर्ष 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लेते हुए इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी है। ये एक अत्यंत महत्वपूर्ण निर्णय है क्योंकि जन सामान्य जिसने आपातकाल का दौर नहीं देखा उसे पता होना चाहिए कि संविधान बदलना और उससे खिलवाड़ करना वास्तव में क्या होता है, जो कांग्रेस ने आज से पचास साल पहले किया था।  

संविधान हत्या दिवस की अधिसूचना आने के बाद अब हर वर्ष 25 जून को कांग्रेस के काले कारनामे जनता को याद दिलाए जायेंगे स्वाभाविक है इससे कांग्रेस और इंडी गठबंधन असहज है और अनाप- शनाप बयानबाजी कर रहा है। प्रियंका गांधी वाड्रा से  लेकर शिवसेना नेता उद्वव ठाकरे गुट के संजय राउत तक सभी बहुत ही विकृत बयान दे रहे हैं। इनका कहना है कि जिस घटना को 50 वर्ष हो चुके हैं भाजपा उसे क्यों याद रखना चाहती  है? इनका तर्क मानें तो फिर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस भी नहीं मनाना चाहिए क्योंकि उसके तो पचहत्तर वर्ष बीत गए हैं ? कुतर्क कांग्रेस का चरित्र बन गया है। 

वास्तविकता यह है कि 25 जून हर उस व्यक्ति और परिवार के घाव पर मलहम लगाने और स्मरण करने का दिन है जो इंदिरा गांधी की सत्ता लोलुपता के लिए लगाए गए आपातकाल की क्रूरता का पीड़ित है। इंदिरा गांधी ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए जिस तरह संविधान का गला घोंटा था वह सविंधान की हत्या के रूप में ही याद किया जा सकता है। उस दौरान देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को पूरी तरह से छीन लिया गया था। लाखों लोगों को बिना कारण जेल भेज दिया गया था।जेल में लोगों पर क्रूर अमानवीय अत्याचार किये गए थे। लाखों परिवारों  को आपातकाल में  अथाह दुःख सहन करना पड़ा था। इस दौरान सत्तारूढ़ कांग्रेस के नेताओं ने भयंकर भ्रष्टाचार किया और देश की संपत्ति को अंग्रेजों और मुगल आक्रमणकारियों की तरह लूटी गई। चाहे फिल्म और संगीत जगत रहा हो या समाचार जगत या फिर राजनीति कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं बचा था जहाँ आपातकाल के अत्याचार न पहुंचे हों। डर और कुंठा के उस माहौल को क्यों भूल जाना चाहिए? देश को पता चलना चाहिए कि आपातकाल और तानाशाह क्या होता है जिससे कोई भी व्यक्ति कभी भी इंदिरा गाँधी जैसी हरकत दोबारा न कर सके।

जो सबसे जघन्य अपराध संविधान के साथ हुआ वो थे उसकी आत्मा की हत्या करके उसकी प्रस्तावना में पंथ निरपेक्ष और समाजवाद शब्द जोड़ा जाना, यह तुष्टीकरण का सबसे घृणित उदहारण है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हिटलर कहने वाली कांग्रेस की रग रग में तानाशाही भरी है। एक समय था जब कांग्रेस समाज के हर वर्ग को अपनी इच्छा के अनुरूप ही नियंत्रित करती थी फिर वह चाहे कार्यपालिका हो, न्यायपालिका या फिर मीडिया और मनोरंजन जगत। राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारों को ताश के पत्तों के घर की तरह गिरा दिया जाता था। 

कांग्रेस ने केवल 25 जून को ही संविधान की हत्या नहीं की अपितु कई अवसरों पर संविधान का गला घोंटा। गांधी परिवार ने कई बार देश की न्यायपालिका के आदेशों को खारिज करवाया जिसमें शाहबानो प्रकरण की चर्चा अभी भी हो रही है। कांग्रेस के आपातकाल में सबसे अधिक अधिक संविधान संशोधन किये गये थे और जमकर मुस्लिम तुष्टिकरण का खेल भी खेला गया। 

राहुल गांधी अपने पूर्वजों की राह पर चलते हुए वर्तमान समय में भी तानाशाही रवैया अपना रहे हैं और देश में अराजकता का वातावरण बनाने का प्रयास कर रहे हैं। अट्ठारहवी लोकसभा के संसद के प्रथम सत्र में देश के इतिहास में पहली बार प्रधानमंत्री को बोलने से रोकने के लिए  गजब का हंगामा किया गया। नेता प्रतिपक्ष ने स्वयं सांसदों को वेल में जाकर हल्ला मचाने को बाध्य किया ।  ये किसी भी स्थिति में स्वस्थ लोकतंत्र का परिचायक नहीं है और कांग्रेस की तानाशाही मानसिकता दिखता है  ।

कुछ लोग संविधान हत्या दिवस नमकरण का विरोध कर रहे हैं कि यह नाम उचित नहीं है जबकि यह नाम पूरी तरह से सही भी है और एकदम सटीक भी क्योंकि कांग्रेस लगातार संविधान की हत्या ही करती आ रही है। 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या के विवादित ढांचे के टूट जाने के  बाद भाजपा शासित चार राज्यों की चुनी हुई सरकारों को बिना कारण बर्खास्त कर दिया गया था। 

शिवसेना नेता संजय राउत तो  दो कदम आगे निकलकर पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्वर्गीय अटल जी पर ही आरोप लगा रहे हैं कि वह भी आपातकाल लगा सकते थे, संजय राउत यह बात भूल गये है कि यह अटल जी ही हैं जिन्होंने गठबंधन राजनीति में भी शुचिता की पराकाष्ठा स्थापित की और किसी भी प्रकार का गलत गठबंधन नहीं किया, अपितु अपनी सरकार के एक वोट से गिरने पर सीधे इस्तीफा देने राष्ट्रपति भवन चले गये थे। 

केंद्र सरकार ने 25 जून को संविधान हत्या दिवस घोषित करके एक तीर से कई निशाने साधे हैं । इससे जहां एक और कांग्रेस असहज हुई है वहीं जो लोग केंद्र सरकार को बहुत कमजोर समझ रहे थे वो भी सकते में हैं साथ ही आपातकाल के बाद जन्मी पीढ़ी इसके विषय में जानने को उत्सुक दिख रही है ।  

( उपर्युक्त लेख लेखक मृत्युंजय दीक्षित के निजी विचार हैं। आवश्यक नहीं है कि इन विचारों से आईपीएन भी सहमत हो। ) 

सर्वाधिक पसंद

Leave a Reply

comments

Loading.....
  1. No Previous Comments found.